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दुर्योधन के पास जब श्रीकृष्ण मैत्री संदेश और युद्ध ना करने और केवल पाँच गाँव देने की संधि करने गये तो दुर्योधन ने अपनी कुबुद्धि लगा के उनको ही बांधने हेतु प्रयास किया तब प्रभु श्री कृष्ण ने जो चेतावनी दी ।उसे
राष्ट्रकवि दिनकर अपने शब्दों में लिखते हैं ।
बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?
हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
आज हिन्दी दिवस के दिन ये अद्भुत वीररस से भरपूर कविता आपको भी यह विश्वास दिलाती है कि मित्रों से और उन सभी लोगों को जिन्हें आप अपना मानते है ।टकराव की स्थिति में संधि पत्र ज़रूर लें जायें परंतु अगर सामने वाला अन्याय के पक्ष में लगातार हो तो भगवान श्रीकृष्ण की बातों का ही संदर्भ लेना चाहिए ।
और अंतिम संकल्प यही घोषित कर देना चाहिए कि
'याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।'
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 🔥🔥🙏🙏
BY ✍️शायरी का दरिया💐
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