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शेरशाह ने 1544 में कलिंजर के क़िले का घेरा डाला जहाँ बम फेंकने की आज़माइश में शेरशाह अपने ही बम के ज़ख़ीरे में लगी आग का शिकार हो गए। शेरशाह ने उसी जली हुई हालत में अपने एक जनरल ईसा ख़ाँ को तलब किया और हुक्म दिया कि उनके ज़िंदा रहते ही क़िला फ़तह कर लिया जाए। ईसा ख़ाँ ने ये सुनते ही क़िले पर यल्ग़ार बोल दिया। 22 मई 1545 को शेरशाह को क़िला फ़तह की ख़बर मिली। ख़बर सुनकर जलने की तकलीफ़ में भी उनके चेहरे पर ख़ुशी और संतोष के भाव उभर आए। चंद लम्हों बाद उन्होंने अपने आख़िरी अल्फ़ाज़ कहे, 'या ख़ुदा, मैं तेरा शुक्रगुज़ार हूँ कि तुने मेरी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी कर दी।' और यह कहते ही उनकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं। आज भी उनका मकबरा सहसाराम बिहार में मौजूद है।। नाज़ है ऐसे शुरवीर पर। 💐🇮🇳🙏🇮🇳💐 जय हिन्द
BY सच्चा इतिहास
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