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शेरशाह का जन्म पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक गांव में हुआ था।
शेरशाह सूरी की तालीम जौनपुर के किसी अटाला मस्जिद के मदरसे से हुई थी। उनका असली नाम फ़रीद था लेकिन वो शेरशाह के रूप में जाने जाते थे। उन्हें यह नाम इसलिए मिला कि कम उम्र में उन्होंने अकेले ही एक शेर को मार गिराया था। उनका कुलनाम 'सूरी' उनके गृहनगर "सुर" से लिया गया था। बड़ा होने पर शेरशाह बिहार के एक छोटे सरग़ना जलाल ख़ाँ के दरबार में वज़ीर के तौर पर काम करने लगे। फिर शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया। शेरशाह की बहादुरी और ज़ेहानत से प्रभावित होकर बाबर ने शेरशाह को तरक़्क़ी देकर सिपहसलार बनाया और फिर उन्हें बिहार का गवर्नर नियुक्त किया।

बाबर की सेना में रहते हुए ही शेरशाह हिंदुस्तान की गद्दी पर बैठने के ख़्वाब देखने लगे थे। शेरशाह की महत्वाकांक्षा इसलिए बढ़ी क्योंकि बिहार और बंगाल पर उनका पूरा नियंत्रण था। इस तरह वो बाबर के बेटे मुग़ल बादशाह हुमायूं के लिए ही बहुत बड़ा ख़तरा बन गए।

1537 में हुमायुं और शेरशाह की सेनाएं चौसा में एक दूसरे के आमने सामने हुईं लेकिन जंग शुरू होने से पहले ही दोनों में समझौता हो गया। इसके कुछ महीनों बाद 17 मई, 1540 को कन्नौज में हुमायूँ और शेरशाह सूरी की सेनाओं के बीच फिर मुक़ाबला हुआ। जहाँ शेरशाह की सेना में सिर्फ़ 15000 सैनिक थे, तो वहीं हुमायूँ की सेना में 40000 सैनिक थे। लेकिन हुमायूँ के सैनिकों ने लड़ाई शुरू होने से पहले ही उसका साथ छोड़ दिया और बिना एक भी सैनिक गंवाए शेरशाह की जीत हो गई। इस तरह शेरशाह ने हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद तो शेरशाह जो हुमायुं के पीछे पड़े की पड़े ही रहे और उन्हें चैन से जीने न दिया।

शेरशाह को पूरे हिंदुस्तान में सड़कें और सराय बनवाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने सड़कों के दोनों तरफ़ पेड़ लगवाए ताकि सड़क पर चलने वालों को पेड़ की छाया मिल सके। किनारे-किनारे अमरूद के दरख़्त लगवाए कि मुसाफ़िर अमरूद खा सकें। उन्होंने चार बड़ी सड़कें बनवाईं, जिनमें सबसे बड़ी थी ढाका के पास सोनारगाँव से सिंधु नदी तक की 1500 किलोमीटर लंबी सड़क जिसे आज जीटी रोड कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने आगरा से बुरहानपुर, आगरा से जोधपुर और लाहौर से मुल्तान तक की सड़कें भी बनवाईं। न सिर्फ़ ये, उन्होंने हर दो कोस पर लोगों के ठहरने के लिए सराय बनवाईं और कुएं खुदवाए। हर सराय पर दो घोड़े भी रखवाए जिनका इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए हरकारे कर सकें। शेरशाह के प्रशासन की सफलता में इन सड़कों और सरायों ने बेहद अहम भूमिका निभाई।

मध्यकालीन भारत के सबसे सफल शासकों में से एक शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में भारत में पोस्टल विभाग को विकसित किया। उन्होंने उत्तर भारत में चल रही डाक व्यवस्था को दोबारा से संगठित किया, ताकि लोग अपने संदेशों को अपने क़रीबियों और परिचितों को जल्दी पहुंचा सकें। तीन धातुओं की सिक्का प्रणाली जो मुग़लों की पहचान बनी वो शेरशाह द्वारा ही शुरू की गई थी। पहला रुपया शेरशाह के शासन में ही जारी हुआ जो आज के रुपया का अग्रदूत कहलाएगा।

शेरशाह का शासनकाल बहुत कम होने के बावजूद स्थापत्य कला में उनके योगदान को कम करके नहीं आँका जा सकता। उन्होंने दिल्ली में पुराना क़िला बनवाया। उनकी मंशा इसे दिल्ली का छठा शहर बनाने की थी। 1542 में उन्होंने पुराने क़िले के अंदर ही क़िला-ए-कुहना मस्जिद बनवाई। सासाराम में बने उनके मक़बरे को स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना माना जाता है। शेरशाह ने अपनी ज़िन्दगी में ही इस मक़बरे का काम शुरु करवा दिया था। यह मक़बरा एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

शेरशाह अपनी प्रजा के लिए एक पिता के समान थे। असामाजिक तत्वों के प्रति वो काफ़ी सख़्त थे लेकिन दबे-कुचले लोगों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उनके मन में बहुत दया और करुणा का भाव था। उन्होंने हर दिन भूखे लोगों के खाने के लिए 500 तोले सोने को बेचने से मिलने वाली आय फिक्स कर रखा था।

शेरशाह का प्रशासन बहुत चुस्त था। जिस किसी भी इलाक़े में अपराध होते थे अधिकारियों को प्रभावित लोगों को हरजाना देने के लिए कहा जाता था। उन्होंने हमेशा इस बात का भी ख़याल रखा कि उनकी सेना के पैरों तले लोगों के खेत न रौंदे जाएं। अगर उनकी सेना से खेतों को नुक़सान पहुंचता था तो वो अपने अमीर भेज कर किसान को तुरंत नुक़सान का मुआवज़ा दिलवाते थे।

अपने छोटे से करियर में उन्होंने लोगों के बीच धार्मिक सौहार्द स्थापित करने पर बहुत ज़ोर दिया। शेरशाह के शासन में हिंदुओं को महत्वपूर्ण पदों पर रखा जाता था। उनके सबसे ख़ास सिपहसलार ब्रह्मजीत गौड़ राजपूत थे जिन्हें उन्होंने चौसा और बिलग्राम की लड़ाई के बाद हुमायूं का पीछा करने के लिए लाहौर तक भेजा था।



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शेरशाह का जन्म पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक गांव में हुआ था।
शेरशाह सूरी की तालीम जौनपुर के किसी अटाला मस्जिद के मदरसे से हुई थी। उनका असली नाम फ़रीद था लेकिन वो शेरशाह के रूप में जाने जाते थे। उन्हें यह नाम इसलिए मिला कि कम उम्र में उन्होंने अकेले ही एक शेर को मार गिराया था। उनका कुलनाम 'सूरी' उनके गृहनगर "सुर" से लिया गया था। बड़ा होने पर शेरशाह बिहार के एक छोटे सरग़ना जलाल ख़ाँ के दरबार में वज़ीर के तौर पर काम करने लगे। फिर शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया। शेरशाह की बहादुरी और ज़ेहानत से प्रभावित होकर बाबर ने शेरशाह को तरक़्क़ी देकर सिपहसलार बनाया और फिर उन्हें बिहार का गवर्नर नियुक्त किया।

बाबर की सेना में रहते हुए ही शेरशाह हिंदुस्तान की गद्दी पर बैठने के ख़्वाब देखने लगे थे। शेरशाह की महत्वाकांक्षा इसलिए बढ़ी क्योंकि बिहार और बंगाल पर उनका पूरा नियंत्रण था। इस तरह वो बाबर के बेटे मुग़ल बादशाह हुमायूं के लिए ही बहुत बड़ा ख़तरा बन गए।

1537 में हुमायुं और शेरशाह की सेनाएं चौसा में एक दूसरे के आमने सामने हुईं लेकिन जंग शुरू होने से पहले ही दोनों में समझौता हो गया। इसके कुछ महीनों बाद 17 मई, 1540 को कन्नौज में हुमायूँ और शेरशाह सूरी की सेनाओं के बीच फिर मुक़ाबला हुआ। जहाँ शेरशाह की सेना में सिर्फ़ 15000 सैनिक थे, तो वहीं हुमायूँ की सेना में 40000 सैनिक थे। लेकिन हुमायूँ के सैनिकों ने लड़ाई शुरू होने से पहले ही उसका साथ छोड़ दिया और बिना एक भी सैनिक गंवाए शेरशाह की जीत हो गई। इस तरह शेरशाह ने हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद तो शेरशाह जो हुमायुं के पीछे पड़े की पड़े ही रहे और उन्हें चैन से जीने न दिया।

शेरशाह को पूरे हिंदुस्तान में सड़कें और सराय बनवाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने सड़कों के दोनों तरफ़ पेड़ लगवाए ताकि सड़क पर चलने वालों को पेड़ की छाया मिल सके। किनारे-किनारे अमरूद के दरख़्त लगवाए कि मुसाफ़िर अमरूद खा सकें। उन्होंने चार बड़ी सड़कें बनवाईं, जिनमें सबसे बड़ी थी ढाका के पास सोनारगाँव से सिंधु नदी तक की 1500 किलोमीटर लंबी सड़क जिसे आज जीटी रोड कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने आगरा से बुरहानपुर, आगरा से जोधपुर और लाहौर से मुल्तान तक की सड़कें भी बनवाईं। न सिर्फ़ ये, उन्होंने हर दो कोस पर लोगों के ठहरने के लिए सराय बनवाईं और कुएं खुदवाए। हर सराय पर दो घोड़े भी रखवाए जिनका इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए हरकारे कर सकें। शेरशाह के प्रशासन की सफलता में इन सड़कों और सरायों ने बेहद अहम भूमिका निभाई।

मध्यकालीन भारत के सबसे सफल शासकों में से एक शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में भारत में पोस्टल विभाग को विकसित किया। उन्होंने उत्तर भारत में चल रही डाक व्यवस्था को दोबारा से संगठित किया, ताकि लोग अपने संदेशों को अपने क़रीबियों और परिचितों को जल्दी पहुंचा सकें। तीन धातुओं की सिक्का प्रणाली जो मुग़लों की पहचान बनी वो शेरशाह द्वारा ही शुरू की गई थी। पहला रुपया शेरशाह के शासन में ही जारी हुआ जो आज के रुपया का अग्रदूत कहलाएगा।

शेरशाह का शासनकाल बहुत कम होने के बावजूद स्थापत्य कला में उनके योगदान को कम करके नहीं आँका जा सकता। उन्होंने दिल्ली में पुराना क़िला बनवाया। उनकी मंशा इसे दिल्ली का छठा शहर बनाने की थी। 1542 में उन्होंने पुराने क़िले के अंदर ही क़िला-ए-कुहना मस्जिद बनवाई। सासाराम में बने उनके मक़बरे को स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना माना जाता है। शेरशाह ने अपनी ज़िन्दगी में ही इस मक़बरे का काम शुरु करवा दिया था। यह मक़बरा एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

शेरशाह अपनी प्रजा के लिए एक पिता के समान थे। असामाजिक तत्वों के प्रति वो काफ़ी सख़्त थे लेकिन दबे-कुचले लोगों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए उनके मन में बहुत दया और करुणा का भाव था। उन्होंने हर दिन भूखे लोगों के खाने के लिए 500 तोले सोने को बेचने से मिलने वाली आय फिक्स कर रखा था।

शेरशाह का प्रशासन बहुत चुस्त था। जिस किसी भी इलाक़े में अपराध होते थे अधिकारियों को प्रभावित लोगों को हरजाना देने के लिए कहा जाता था। उन्होंने हमेशा इस बात का भी ख़याल रखा कि उनकी सेना के पैरों तले लोगों के खेत न रौंदे जाएं। अगर उनकी सेना से खेतों को नुक़सान पहुंचता था तो वो अपने अमीर भेज कर किसान को तुरंत नुक़सान का मुआवज़ा दिलवाते थे।

अपने छोटे से करियर में उन्होंने लोगों के बीच धार्मिक सौहार्द स्थापित करने पर बहुत ज़ोर दिया। शेरशाह के शासन में हिंदुओं को महत्वपूर्ण पदों पर रखा जाता था। उनके सबसे ख़ास सिपहसलार ब्रह्मजीत गौड़ राजपूत थे जिन्हें उन्होंने चौसा और बिलग्राम की लड़ाई के बाद हुमायूं का पीछा करने के लिए लाहौर तक भेजा था।

BY सच्चा इतिहास


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Lastly, the web previews of t.me links have been given a new look, adding chat backgrounds and design elements from the fully-features Telegram Web client. "And that set off kind of a battle royale for control of the platform that Durov eventually lost," said Nathalie Maréchal of the Washington advocacy group Ranking Digital Rights. Telegram has become more interventionist over time, and has steadily increased its efforts to shut down these accounts. But this has also meant that the company has also engaged with lawmakers more generally, although it maintains that it doesn’t do so willingly. For instance, in September 2021, Telegram reportedly blocked a chat bot in support of (Putin critic) Alexei Navalny during Russia’s most recent parliamentary elections. Pavel Durov was quoted at the time saying that the company was obliged to follow a “legitimate” law of the land. He added that as Apple and Google both follow the law, to violate it would give both platforms a reason to boot the messenger from its stores. READ MORE The last couple days have exemplified that uncertainty. On Thursday, news emerged that talks in Turkey between the Russia and Ukraine yielded no positive result. But on Friday, Reuters reported that Russian President Vladimir Putin said there had been some “positive shifts” in talks between the two sides.
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