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क्रिसमस विशेष : समुद्र ऊंचाई नापने का केन्द्र बिन्दु है कानपुर का मैथॉडिस्ट चर्च

(674 words)

दुनिया भर के गिरिजाघर सजे हुए हैं, कोविड-19 के बीच लोगों की भीड़ भले ही कम हो, लेकिन प्रार्थनाओं का दौर शुरू हो चुका है। क्रिसमस पर प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया जाएगा। बात अगर गिरिजाघरों की करें तो उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गिरिजाघर है जिसकी आज भी अपनी एक अलग पहचान है। दरअसल इसका निर्माण समुद्र ऊंचाई नापने के केंद्र बिंदु के रूप में किया गया था।

औद्योगिक शहर कानपुर के सिविल लाइंस में स्थित एलएलजेएम मेथाडिस्ट गिरिजाघर प्रदेश का इकलौता ऐसा चर्च है जो अपने आप में एक अनोखा इतिहास रखता है। शहर के जिस सेंटर प्वाइंट में यह बना है वहां से समुद्र की ऊंचाई का पता लगाने के लिए केन्द्र बिन्दु है। यह बिन्दु (सेंटर) इसी गिरिजाघर की सीढ़ियों के नीचे बना हुआ है। साथ-साथ इस गिरिजाघर को बनाते समय इसमें एक मास्टर ईंट का प्रयोग किया गया है, जिसे हटाते ही पूरे चर्च की इमारत भरभराकर ताश के पत्ते की तरह गिर जाएगी।

1814 में चर्च की रखी गई थी नींव

एलएलजेएम मेथाडिस्ट चर्च के पादरी जेजे ओलिवर बताते है कि इस गिरिजाघर का अमेरिका से सीधा रिश्ता है। इसकी नींव 1814 में रखी गई थी। लेकिन तब निर्माणकार्य नहीं कराया जा सका।ऐसा बताया जाता है कि मेथाडिस्ट गिरिजाघर, मेथाडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया (एमसीएसए) ने भारत में कुछ गिरिजाघरों को बनवाने का निर्णय लिया था। कानपुर में ब्रिटिश सेना की छावनी को देखते हुए क्रिश्चियनों की संख्या ज्यादा थी। इसके चलते लगभग सौ साल बाद मेथाडिस्ट चर्च की आधारशिला क्रोशिया बिनाई से जमा पूंजी करने वाली दिव्यांग अमेरिकी महिला लीजी जॉनसन द्वारा रखी गई और पूरा चर्च सात अप्रैल 1914 बनकर तैयार हुआ। हालांकि इस बात को लेकर जानकार इत्तेफाक रखते हैं कि चर्च का निर्माण कराने वाली लीजी जॉनसन कभी कानपुर आई थी।

इमारत में लगी है मास्टर ईंट

पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि वर्ष 1814 में इस गिरिजाघर की नींव रखी गयी थी। ब्रिटिश और भारतीय कारीगरों ने मिलकर इसे बनाया था। यह प्रदेश का इकलौता और अनोखा चर्च है जिसकी पूरी इमारत एक मास्टर ईंट पर टिकी हई है। अगर उस ईंट को हटा दिया जाए तो पूरी इमारत दो सैकेंड के अंदर भर-भराकर ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगी। इस इमारत को बनाने के दौरान पीछे से ईंटों के पिलरों का स्पोर्ट दिया गया है, लेकिन कहीं भी कंकरीट व सरिया आदि का उपयोग नहीं किया गया है। पूरी इमारत ईंटों से बनी है जो आज भी नई ईंट की तरह दिखती हैं।

मेथाडिस्ट गिरिजाघर शिल्प की दृष्टि से भी अनोखा

शिल्प की दृष्टि से भी यह गिरिजाघर अनोखा माना जाता है। शहर के जिस सेंटर प्वांइन्ट से समुद्र की ऊंचाई नापी जाती है उसका केन्द्र बिन्दु इसी चर्च के अंदर बना हुआ है। पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि हाल के दिनों में कानपुर में बन रहे मेट्रो की ऊंचाई को नापने के लिये इंजीनियर यहां पर आए थे, यही नहीं कानपुर में मंधना और सचेंडी में बनने वाले रिंग रोड की ऊंचाई और नापजोख के लिए भी इंजीनियरों ने इसी केन्द्र बिन्दु का उपयोग किया जा रहा है।

106 साल होने पर भव्य सजावट से मनाया जा रहा क्रिसमस

मेथाडिस्ट गिरिजाघर ने अपने शताब्दी वर्ष को 2014 में पूरा किया था। शताब्दी वर्षगांठ पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया था। पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि इस बार 106 साल पूरा होने पर चर्च में उत्साह के साथ समारोह का आयोजन किया जा रहा है। पूरा चर्च को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया है। इस बार हस्त निर्मित साज-सज्जा के सामानों से पूरा चर्च गुलजार किया गया है। क्रिसमस ट्री के साथ सेंटा क्लॉज आदि के चित्र व नाटय कलाकारों को भी समारोह में शामिल किया गया है, ताकि बच्चे व बुजुर्ग भी इस मनभावन कार्यक्रम का पूरा लुत्फ उठा सके।पादरी के मुताबिक, इस गिरिजाघर में सबसे ज्यादा सदस्य है और इसकी खूबियों को जानने के लिये देश-विदेश से भी लोग आते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार



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क्रिसमस विशेष : समुद्र ऊंचाई नापने का केन्द्र बिन्दु है कानपुर का मैथॉडिस्ट चर्च

(674 words)

दुनिया भर के गिरिजाघर सजे हुए हैं, कोविड-19 के बीच लोगों की भीड़ भले ही कम हो, लेकिन प्रार्थनाओं का दौर शुरू हो चुका है। क्रिसमस पर प्रार्थनाओं का आयोजन भी किया जाएगा। बात अगर गिरिजाघरों की करें तो उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गिरिजाघर है जिसकी आज भी अपनी एक अलग पहचान है। दरअसल इसका निर्माण समुद्र ऊंचाई नापने के केंद्र बिंदु के रूप में किया गया था।

औद्योगिक शहर कानपुर के सिविल लाइंस में स्थित एलएलजेएम मेथाडिस्ट गिरिजाघर प्रदेश का इकलौता ऐसा चर्च है जो अपने आप में एक अनोखा इतिहास रखता है। शहर के जिस सेंटर प्वाइंट में यह बना है वहां से समुद्र की ऊंचाई का पता लगाने के लिए केन्द्र बिन्दु है। यह बिन्दु (सेंटर) इसी गिरिजाघर की सीढ़ियों के नीचे बना हुआ है। साथ-साथ इस गिरिजाघर को बनाते समय इसमें एक मास्टर ईंट का प्रयोग किया गया है, जिसे हटाते ही पूरे चर्च की इमारत भरभराकर ताश के पत्ते की तरह गिर जाएगी।

1814 में चर्च की रखी गई थी नींव

एलएलजेएम मेथाडिस्ट चर्च के पादरी जेजे ओलिवर बताते है कि इस गिरिजाघर का अमेरिका से सीधा रिश्ता है। इसकी नींव 1814 में रखी गई थी। लेकिन तब निर्माणकार्य नहीं कराया जा सका।ऐसा बताया जाता है कि मेथाडिस्ट गिरिजाघर, मेथाडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया (एमसीएसए) ने भारत में कुछ गिरिजाघरों को बनवाने का निर्णय लिया था। कानपुर में ब्रिटिश सेना की छावनी को देखते हुए क्रिश्चियनों की संख्या ज्यादा थी। इसके चलते लगभग सौ साल बाद मेथाडिस्ट चर्च की आधारशिला क्रोशिया बिनाई से जमा पूंजी करने वाली दिव्यांग अमेरिकी महिला लीजी जॉनसन द्वारा रखी गई और पूरा चर्च सात अप्रैल 1914 बनकर तैयार हुआ। हालांकि इस बात को लेकर जानकार इत्तेफाक रखते हैं कि चर्च का निर्माण कराने वाली लीजी जॉनसन कभी कानपुर आई थी।

इमारत में लगी है मास्टर ईंट

पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि वर्ष 1814 में इस गिरिजाघर की नींव रखी गयी थी। ब्रिटिश और भारतीय कारीगरों ने मिलकर इसे बनाया था। यह प्रदेश का इकलौता और अनोखा चर्च है जिसकी पूरी इमारत एक मास्टर ईंट पर टिकी हई है। अगर उस ईंट को हटा दिया जाए तो पूरी इमारत दो सैकेंड के अंदर भर-भराकर ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगी। इस इमारत को बनाने के दौरान पीछे से ईंटों के पिलरों का स्पोर्ट दिया गया है, लेकिन कहीं भी कंकरीट व सरिया आदि का उपयोग नहीं किया गया है। पूरी इमारत ईंटों से बनी है जो आज भी नई ईंट की तरह दिखती हैं।

मेथाडिस्ट गिरिजाघर शिल्प की दृष्टि से भी अनोखा

शिल्प की दृष्टि से भी यह गिरिजाघर अनोखा माना जाता है। शहर के जिस सेंटर प्वांइन्ट से समुद्र की ऊंचाई नापी जाती है उसका केन्द्र बिन्दु इसी चर्च के अंदर बना हुआ है। पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि हाल के दिनों में कानपुर में बन रहे मेट्रो की ऊंचाई को नापने के लिये इंजीनियर यहां पर आए थे, यही नहीं कानपुर में मंधना और सचेंडी में बनने वाले रिंग रोड की ऊंचाई और नापजोख के लिए भी इंजीनियरों ने इसी केन्द्र बिन्दु का उपयोग किया जा रहा है।

106 साल होने पर भव्य सजावट से मनाया जा रहा क्रिसमस

मेथाडिस्ट गिरिजाघर ने अपने शताब्दी वर्ष को 2014 में पूरा किया था। शताब्दी वर्षगांठ पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया था। पादरी जेजे ओलीवर ने बताया कि इस बार 106 साल पूरा होने पर चर्च में उत्साह के साथ समारोह का आयोजन किया जा रहा है। पूरा चर्च को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया है। इस बार हस्त निर्मित साज-सज्जा के सामानों से पूरा चर्च गुलजार किया गया है। क्रिसमस ट्री के साथ सेंटा क्लॉज आदि के चित्र व नाटय कलाकारों को भी समारोह में शामिल किया गया है, ताकि बच्चे व बुजुर्ग भी इस मनभावन कार्यक्रम का पूरा लुत्फ उठा सके।पादरी के मुताबिक, इस गिरिजाघर में सबसे ज्यादा सदस्य है और इसकी खूबियों को जानने के लिये देश-विदेश से भी लोग आते हैं।

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These entities are reportedly operating nine Telegram channels with more than five million subscribers to whom they were making recommendations on selected listed scrips. Such recommendations induced the investors to deal in the said scrips, thereby creating artificial volume and price rise. "The argument from Telegram is, 'You should trust us because we tell you that we're trustworthy,'" Maréchal said. "It's really in the eye of the beholder whether that's something you want to buy into." As a result, the pandemic saw many newcomers to Telegram, including prominent anti-vaccine activists who used the app's hands-off approach to share false information on shots, a study from the Institute for Strategic Dialogue shows. In view of this, the regulator has cautioned investors not to rely on such investment tips / advice received through social media platforms. It has also said investors should exercise utmost caution while taking investment decisions while dealing in the securities market. "Someone posing as a Ukrainian citizen just joins the chat and starts spreading misinformation, or gathers data, like the location of shelters," Tsekhanovska said, noting how false messages have urged Ukrainians to turn off their phones at a specific time of night, citing cybersafety.
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